गौतम बुद्ध पूर्णिमा निमित्ते गौतम बुद्ध विशे विशेष माहिती मेलवीए
आ माहिती विकिपीडिया परथी संकलित करेल छे।
गौतम बुद्ध की व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ
जन्म ईसवी पूर्व 563
लुंबिनी, नेपाल
निधन ईसवी पूर्व 483 (आयु 80 वर्ष)
कुशीनगर, भारत
जीवनसाथी राजकुमारी यशोधरा
बच्चे Rāhula
पिता शुद्धोधन
माता मायादेवी
पद तैनाती
उत्तराधिकारी मैत्रेय
गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) विश्व महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरू एवं उच्च कोटी के समाज सुधारक थे। तथागत बुद्ध प्राचीनतम धर्मों में से एक महान बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर मे हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जिनका सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए।
आज पुरे विश्व में करीब १८० करोड़ बौद्ध धर्म के अनुयायी है और यह बौद्ध जनसंख्या विश्व की आबादी का २५% हिस्सा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार चीन में ९१% (१२२ करोड़ ) आबादी बौद्ध है। चीन, जापान, व्हिएतनाम, थायलैंड, मंगोलिया, कंबोडिया, श्रिलंका, उत्तर कोरीया, दक्षिण कोरीया, म्यानमार, तैवान, भूतान, हाँग काँग, तिबेट, मकाउ, सिंगापूर ये सब १८ बौद्ध देश है। भारत, मलेशिया, नेपाल, इंडोनेशिया, अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई आदी देशों में भी बौद्धधर्म का अनुयायी की संख्या अधिक है।
गौतम बुद्धका जीवन वृत्त
उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था।लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी)ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा।शुद्दोधन ने पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने एक सी दोहरी भविष्यवाणी की, कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा।दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में उस स्थल पर महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया था। बुद्ध का जन्म दिवस व्यापक रूप से थएरावदा देशों में मनाया जाता है।सुद्धार्थ का मन वचपन से ही करुणा और दया का स्रोत था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है। घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुँह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देता और जीती हुई बाजी हार जाता। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुःखी होना उससे नहीं देखा जाता था। सिद्धार्थ ने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल किए गए हंस की सहायता की और उसके प्राणों की रक्षा की।
आ माहिती विकिपीडिया परथी संकलित करेल छे।
गौतम बुद्ध की व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ
जन्म ईसवी पूर्व 563
लुंबिनी, नेपाल
निधन ईसवी पूर्व 483 (आयु 80 वर्ष)
कुशीनगर, भारत
जीवनसाथी राजकुमारी यशोधरा
बच्चे Rāhula
पिता शुद्धोधन
माता मायादेवी
पद तैनाती
उत्तराधिकारी मैत्रेय
गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) विश्व महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरू एवं उच्च कोटी के समाज सुधारक थे। तथागत बुद्ध प्राचीनतम धर्मों में से एक महान बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर मे हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जिनका सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए।
आज पुरे विश्व में करीब १८० करोड़ बौद्ध धर्म के अनुयायी है और यह बौद्ध जनसंख्या विश्व की आबादी का २५% हिस्सा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार चीन में ९१% (१२२ करोड़ ) आबादी बौद्ध है। चीन, जापान, व्हिएतनाम, थायलैंड, मंगोलिया, कंबोडिया, श्रिलंका, उत्तर कोरीया, दक्षिण कोरीया, म्यानमार, तैवान, भूतान, हाँग काँग, तिबेट, मकाउ, सिंगापूर ये सब १८ बौद्ध देश है। भारत, मलेशिया, नेपाल, इंडोनेशिया, अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई आदी देशों में भी बौद्धधर्म का अनुयायी की संख्या अधिक है।
गौतम बुद्धका जीवन वृत्त
उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था।लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी)ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा।शुद्दोधन ने पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने एक सी दोहरी भविष्यवाणी की, कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा।दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में उस स्थल पर महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया था। बुद्ध का जन्म दिवस व्यापक रूप से थएरावदा देशों में मनाया जाता है।सुद्धार्थ का मन वचपन से ही करुणा और दया का स्रोत था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है। घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुँह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देता और जीती हुई बाजी हार जाता। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुःखी होना उससे नहीं देखा जाता था। सिद्धार्थ ने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल किए गए हंस की सहायता की और उसके प्राणों की रक्षा की।
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